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Precious Matchmaking

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

हिन्दू धर्म में जब किसी के विवाह की बात आती है तो सबसे पहला कार्य कुंडली मिलान का किया जाता है। ताकि वर वधू का आने वाला जीवन सुख-पूर्वक व्यतीत हो सके। यदि वर-वधू की कुंडली मिलती है तभी विवाह संपन्न किया जाता है, क्योंकि विवाह मिलान के लिए गुण मिलान आवश्यक माना जाता है। कुंडली में वर-वधू दोनों के वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री, गण, भकूट, नाड़ी आदि के मिलान को अष्टकूट मिलान कहा जाता है। किसी की कुंडली और जन्म नक्षत्र की जानकारी न होने की दशा में, वर और कन्या के नाम अक्षर के अनुसार गुण मिलान किया जाता है। तो चलिए जानते हैं कि अष्टकूट मिलान में किन बातों पर विचार किया जाता है।

वर्ण- इसमें राशि के अनुसार वर्ण का मिलान किया जाता है। वर और कन्या के वर्ण से उच्चस्तरीय या फिर समान वर्ण होने पर, एक गुण मिलता है। यह व्यक्ति की मानसिक अभिरुचियों से संबंधित होता है।

वश्य- इसें वर और वधू की राशियों के आधार पर आकलन किया जाता है। यह वर और वधू के भावनात्मक संबंध को दर्शाता है।

तारा- इसमें वर और वधू को जन्म नक्षत्रों की गणना करके मिलान किया जाता है। इसका संबंध भाग्योदय से होता है।

योनि- जब कोई भी मनुष्य जन्म लेता है तो वह किसी न किसी योनि में आता है। इन योनियों को अश्व, श्वान, गज जीवों से जोड़ा जाता है। इनकी गणना जन्म नक्षत्र के आधार पर की जाती है। कुछ योनियों को एक दूसरे का परम शत्रु माना गया है। इसे वर और कन्या के आपसी तालमेल से जोड़कर देखा जाता है।

ग्रहमैत्री- इसमें वर-वधू की चंद्र राशियों के स्वामी ग्रहों का मिलान किया जाता है। यदि चंद्र राशियों के स्वामी मित्र न हो तो विचारों में भिन्नता रहती है, जिसके कारण क्लेश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके आधार पर आपसी विश्वास और सहयोग की स्थिति का आकलन किया जाता है।

गण- जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन तरह के गण बताए गए हैं जिसमें देव गण, मनुष्य गण और राक्षस गण बताया गया है। यदि वर और कन्या का गण एक ही है तो इस बहुत शुभ माना जाता है। देव गुण और मनुष्य गण को समान माना जाता है। यदि दोनों में से किसी का देव गण और किसी का राक्षस गण हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। इसके आधार पर आने वाले जीवन में कुटुम्ब के साथ संबंध और सामंजस्य का आकलन किया जाता है।

भकूट- भकूट मिलान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें वर और कन्या की कुंडली में परस्पर चंद्रमा की स्थिति का आकलन किया जाता है। यदि यह मिलान सही प्रकार से न किया जाए तो दाम्पत्य जीवन में मधुरता और प्रेम की कमी रहती है इसके साथ ही जीवन में किसी न किसी प्रकार से परेशानियां आती रहती हैं।

नाड़ी- व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर नाड़ी का तीन तरह से वर्गीकरण किया गया है। मध्य, आदि और अंत्य नाड़ी। वर और वधू की नाड़ी एक नहीं होनी चाहिए। इसे संतान प्राप्ति से जोड़कर देखा जाता है।

इन आठ बातों के आधार पर भलि-भांति विचार करके वर और वधू के आने वाले जीवन के बारे में आकलन किया जाता है। इन सभी के अंको का कुल योग 36 होता है यदि इसमें से 18 या फिर उससे ज्यादा गुण मिलते हैं तभी विवाह शुभ माना जाता है।